इस ज़मीन ओ आसमाँ पर ख़ाक डाल
कुछ नहीं तेरा यहाँ पर ख़ाक डाल
नक़्श होने की तिरी सूरत है और
इस वजूद-ए-बे-निशाँ पर ख़ाक डाल
ख़त्म सब कुछ हार से होता नहीं
उठ और एहसास-ए-ज़ियाँ पर ख़ाक डाल
दर्द जब समझे तिरा वो बे-ज़बाँ
आरज़ू-ए-हम-ज़बाँ पर ख़ाक डाल
इस मकानी क़ैद से बाहर निकल
इस ज़मान ओ ला-ज़माँ पर ख़ाक डाल
तू भरम है और न कोई वहम है
छोड़ माया के जहाँ पर ख़ाक डाल
इन असातीरी फ़ज़ाओं से निकल
इस तिलिस्म-ए-दास्ताँ पर ख़ाक डाल
इस से पहले हर यक़ीं हो गर्द गर्द
हर क़यास और हर गुमाँ पर ख़ाक डाल
ग़ज़ल
इस ज़मीन ओ आसमाँ पर ख़ाक डाल
सुहैल अख़्तर