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इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास | शाही शायरी
is zamane mein na ho kyunkar hamara dil udas

ग़ज़ल

इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास
देख कर अहवाल-ए-आलम उड़ते जाते हैं हवास

बस रहा है बू से तेरी जान-ए-मन ऐसा दिमाग़
बे-दिमाग़ हम को रखे है बाग़ में फूलों की बास

जिस तरफ़ जावे तू ऐ ख़ुर्शीद-रू साये की तरह
हर क़दम मैं भी हूँ तेरे साथ साथ और पास पास

तिश्नगी से चाह की तेरी नहीं सैराब दिल
है मसल मशहूर मुस्तसक़ी की नईं बुझती है प्यास

हक़ से मिलना गेरवे कपड़ों उपर मौक़ूफ़ नईं
दिल के तईं रंगो फ़क़ीरी ये है और सब है लिबास

जूँ जूँ तू साग़र पिए है ग़ैर की मज्लिस के बीच
तूँ तूँ ऐ बद-मस्त दिल में मेरे आता है हिरास

कुनह ज़ात-ए-हक़ को क्या पावे कोई 'हातिम' कभू
सब के आजिज़ हैं यहाँ वहम-ओ-गुमाँ फ़हम ओ क़यास