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इस वक़्त बारे कुछ तो करम-बख़्शी कीजिए | शाही शायरी
is waqt bare kuchh to karam-baKHshi kijiye

ग़ज़ल

इस वक़्त बारे कुछ तो करम-बख़्शी कीजिए

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

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इस वक़्त बारे कुछ तो करम-बख़्शी कीजिए
गुज़रे हम और बात से गाली ही दीजिए

सब्र और दीन-ओ-दिल तो तुम आगे ही ले चुके
बाक़ी है जाँ हमारी सो अब ये भी लीजिए

देवे वो जाम ग़ैर कूँ यूँ मेरे सामने
ये देख क्यूँकि ख़ून-ए-दिल अपना न पीजिए

नासेह ये क्या हिसाब कि मैं जेब को सिलाऊँ
बेहतर है आप मुँह के तईं अपने सी जिए

पत्थर भी बिल्के देख 'जहाँदार' का ये हाल
प्यारे कभू तो आप भी इस पर पसीजिए