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इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए | शाही शायरी
is waste daman chaak kiya shayad ye junun kaam aa jae

ग़ज़ल

इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी

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इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए
दीवाना समझ कर ही उन के होंटों पे मिरा नाम आ जाए

मैं ख़ुश हूँ अगर गुलशन के लिए कुछ मेरा लहू काम आ जाए
लेकिन मुझ को डर है इस का गुलचीं पे न इल्ज़ाम आ जाए

ऐ काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम आ जाए
इक चाँद फ़लक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-बाम आ जाए

मय-ख़ाना सलामत रह जाए इस की तो किसी को फ़िक्र नहीं
मय-ख़्वार हैं बस इस ख़्वाहिश में साक़ी पे कुछ इल्ज़ाम आ जाए

पीने का सलीक़ा कुछ भी नहीं इस पर है ये ख़्वाहिश रिंदों की
जिस जाम पे हक़ है साक़ी का हाथों में वही जाम आ जाए

इस वास्ते ख़ाक-ए-परवाना पर शम्अ बहाती है आँसू
मुमकिन है वफ़ा के क़िस्से में उस का भी कहीं नाम आ जाए

अफ़्साना मुकम्मल है लेकिन अफ़्साने का उनवाँ कुछ भी नहीं
ऐ मौत बस इतनी मोहलत दे उन का कोई पैग़ाम आ जाए