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इस तरह सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ | शाही शायरी
is tarah soi hain aankhen jagte sapnon ke sath

ग़ज़ल

इस तरह सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ

इफ़्तिख़ार नसीम

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इस तरह सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ
ख़्वाहिशें लिपटी हों जैसे बंद दरवाज़ों के साथ

रात-भर होता रहा है उस के आने का गुमाँ
ऐसे टकराती रही ठंडी हवा पर्दों के साथ

एक लम्हे का तअ'ल्लुक़ उम्र भर का रोग है
दौड़ते फिरते रहोगे भागते लम्हों के साथ

मैं उसे आवाज़ दे कर भी बुला सकता न था
इस तरह टूटे ज़बाँ के राब्ते लफ़्ज़ों के साथ

एक सन्नाटा है फिर भी हर तरफ़ इक शोर है
कितने चेहरे आँख में फैले हैं आवाज़ों के साथ

जानी-पहचानी हैं बातें जाने-बूझे नक़्श हैं
फिर भी मिलता है वो सब से मुख़्तलिफ़ चेहरों के साथ

दिल धड़कता ही नहीं है उस को पा कर भी 'नसीम'
किस क़दर मानूस है ये नित-नए सदमों के साथ