इस तरह से तर्जुमानी कर गया
मेरे आशिक़ों को वो पानी कर गया
उस ने चेहरे से हटा डाला नक़ाब
वो मेरी ग़ज़ल पुरानी कर गया
रख गया वो अपने कपड़े सूखने
धूप भी कितनी सुहानी कर गया
भूल जाने की क़सम देना तेरा
याद आने की निशानी कर गया
दो घड़ी को पास आया था कोई
दिल पे बरसों हुक्मरानी कर गया
जिस पे मैं ईमान ले आया 'असद'
मुझ से वो ही बे-ईमानी कर गया

ग़ज़ल
इस तरह से तर्जुमानी कर गया
सुबहान असद