इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है 
आज से तेरी मिरी राह जुदा होती है 
मैं किसी और ही दुनिया में पहुँच जाता हूँ 
जब भी कानों में अज़ानों की सदा होती है 
बद-दुआ' कोई अगर दे तो बुरा मत मानो 
बद-दुआ' भी तो मिरी जान दुआ होती है 
नींद के साथ ही इक बाब नया खुलता है 
ख़्वाब के टूटने जुड़ने की कथा होती है 
जिस्म की वादियों में रह के ये जाना मैं ने 
जिस्म की प्यास तो घनघोर घटा होती है 
मैं तुझे छोड़ के हरगिज़ नहीं जाने वाला 
ऐ मिरी जान तू बे-वज्ह ख़फ़ा होती है 
दो जवाँ दिल जो मोहब्बत में कभी पड़ जाएँ 
क्या ये सच-मुच में ख़ुदा की ही ख़ता होती है
        ग़ज़ल
इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है
त्रिपुरारि

