इस तरह फूट के रोया कोई
बे-कसों का नहीं गोया कोई
शोर से गूँजते सन्नाटों के
वा करे क्या लब-ए-गोया कोई
संग-दिल जब भी कोई याद आया
लग के दीवार से रोया कोई
लूट कर भी कोई बेचैन रहा
लुट के भी चैन से सोया कोई
हश्र-सामाँ हुईं वीराँ आँखें
फिर कसी ख़्वाब में खोया कोई
ज़ीस्त का दश्त समन-ज़ार हुआ
बीज क्या दर्द ने बोया कोई
ग़ज़ल
इस तरह फूट के रोया कोई
ख़ालिद अहमद