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इस तरह दर्द का तुम अपने मुदावा करना | शाही शायरी
is tarah dard ka tum apne mudawa karna

ग़ज़ल

इस तरह दर्द का तुम अपने मुदावा करना

हबीब आरवी

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इस तरह दर्द का तुम अपने मुदावा करना
याद-ए-माज़ी को चराग़-ए-रह-ए-फ़र्दा करना

तेरी दुज़दीदा-निगाही के मैं सौ बार निसार
देखने वाले इसी चाह से देखा करना

हश्र तक जीने का अरमान लिए बैठा हूँ
तुम ज़रा ज़ीस्त के अस्बाब मुहय्या करना

ख़्वाहिश-ए-दीद की तौहीन है जल्वों का ख़याल
मेरी नज़रों का तक़ाज़ा है कि पर्दा करना

एक एहसान है क़ुदरत की जफ़ा-कारी पर
उस की दुनिया में भी जीने की तमन्ना करना

मेरी तस्कीं के लिए फिर कोई वा'दा कीजे
आप पर फ़र्ज़ नहीं वा'दे का ईफ़ा करना

हुस्न बेताब हो ख़ुद वस्ल की ख़ातिर ऐ 'हबीब'
इश्क़ को चाहिए अंदाज़ वो पैदा करना