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इस तरह बज़्म में वस्फ़-ए-रुख़-ए-जानाना करूँ | शाही शायरी
is tarah bazm mein wasf-e-ruKH-e-jaanana karun

ग़ज़ल

इस तरह बज़्म में वस्फ़-ए-रुख़-ए-जानाना करूँ

रज़ा अज़ीमाबादी

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इस तरह बज़्म में वस्फ़-ए-रुख़-ए-जानाना करूँ
आतिश-ए-शौक़ से ता-शम्अ को परवाना करूँ

अक़्ल का तअन न कर मुझ पे अभी ऐ नासेह
इक सुख़न इश्क़ का कह तुझ को भी दीवाना करूँ

अश्क-ए-हसरत की अगर होवे मदद ऐ ज़ाहिद
दिल-ए-सद-चाक को मैं सुब्हा-ए-सद-दाना करूँ

दर्द-ए-दिल पूछ न मुझ से कि वो बातूनी हूँ
हर्फ़ हो एक तो सौ तरह से अफ़्साना करूँ

अपने सौदा ने किया शहर का बाज़ार तो गर्म
ऐ 'रज़ा' दिल में है आबाद मैं वीराना करूँ