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इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़ | शाही शायरी
is shoKH-e-ram-shiar se kahta salam-e-shauq

ग़ज़ल

इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

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इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़
क़ासिद यही है आज हमारा पयाम-ए-शौक़

ताईद-ए-ग़ैब ताले-ए-फ़र्ख़न्दा की मदद
वो इशवा-संज आज हुआ हम-कलाम-ए-शौक़

क़ासिद किया है अहद जो ईफ़ा-ए-अहद का
सुब्ह-ए-उमीद-ए-वस्ल हुई अपनी शाम-ए-शौक़

क्या मुत्तसिल हो यार तलव्वुन है तब्अ में
ये देर-पा कहाँ है तुम्हारा क़याम-ए-शौक़

मद्द-ए-नज़र जो है वो हमें आश्कार हो
ऐ जज़्ब-ए-दिल-नवाज़ मदार-उल-महाम-ए-शौक़

मज्ज़ूब-ए-इश्तियाक़ हैं मस्त-ए-मय-जमाल
रोज़-ए-नुख़ुस्त से है ये शर्ब-ए-मुदाम-ए-शौक़

बे-राह जा रहा है तुझे कुछ ख़बर नहीं
किस फेर में पड़ा है बता हर्ज़ा-गाम-ए-इश्क़

इस कैफ़-ए-ज़ौक़-ओ-शौक़ में तस्वीर-ए-यार है
फ़र्रुख़-सरोश ने ये दिया है पयाम-ए-शौक़

तौफ़ीक़ का है फ़ैज़ निगाह-ए-दलील-ए-राह
हम को मिला है ग़ैब से कास-उल-किराम-ए-शौक़

'साक़ी' वो देख शाहिद-ए-मय-नोश आ गया
लबरेज़ है ये शाएक़-ए-नज़्ज़ारा जाम-ए-शौक़