EN اردو
इस सदी का जब कभी ख़त्म-ए-सफ़र देखेंगे लोग | शाही शायरी
is sadi ka jab kabhi KHatm-e-safar dekhenge log

ग़ज़ल

इस सदी का जब कभी ख़त्म-ए-सफ़र देखेंगे लोग

रम्ज़ अज़ीमाबादी

;

इस सदी का जब कभी ख़त्म-ए-सफ़र देखेंगे लोग
वक़्त के चेहरे पे ख़ाक-ए-रहगुज़र देखेंगे लोग

तुख़्म-रेज़ी कर रहा हूँ मैं इसी उम्मीद पर
फूलते फलते हुए कल ये शजर देखेंगे लोग

अक़्ल-ए-इंसानी की जिस दिन इंतिहा हो जाएगी
ख़त्म होते चाँद सूरज का सफ़र देखेंगे लोग

काँच की दीवार पत्थर के सुतूँ लोहे की छत
हर जगह हर शहर में ऐसा ही घर देखेंगे लोग

जुरअत-ए-परवाज़ के अंजाम से वाक़िफ़ हूँ मैं
ख़ून में डूबा हुआ ये बाल-ओ-पर देखेंगे लोग

क्या इसी दिन के लिए माँगी थी फूलों की दुआ
शबनमी-मौसम में भी रक़्स-ए-शरर देखेंगे लोग

ख़त्म हम पर हैं शब-ए-ज़िंदाँ की सारी सख़्तियाँ
ज़ेहन ओ दिल आज़ाद होगा वो सहर देखेंगे लोग

अंजुमन को फ़ैज़ पहुँचाएगी शम-ए-अंजुमन
क्या हसीं होती है उम्र मुख़्तसर देखेंगे लोग

'रम्ज़' मैं अपनी ज़बाँ से कुछ नहीं बतलाऊँगा
किस तरफ़ उठती है ये मेरी नज़र देखेंगे लोग