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इस साल शराफ़त का लिबादा नहीं पहना | शाही शायरी
is sal sharafat ka libaada nahin pahna

ग़ज़ल

इस साल शराफ़त का लिबादा नहीं पहना

इक़बाल साजिद

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इस साल शराफ़त का लिबादा नहीं पहना
पहना है मगर इतना ज़ियादा नहीं पहना

उस ने भी कई रोज़ से ख़्वाहिश नहीं ओढ़ी
मैं ने भी कई दिन से इरादा नहीं पहना

दौड़े हैं मगर सेहन से बाहर नहीं दौड़े
घर ही में रहे पाँव में जादा नहीं पहना

आबाद हुए जब से यहाँ तंग-नज़र लोग
इस शहर ने माहौल कुशादा नहीं पहना

दरवेश नज़र आता था हर हाल में लेकिन
'साजिद' ने लिबास इतना भी सादा नहीं पहना