इस साल शराफ़त का लिबादा नहीं पहना
पहना है मगर इतना ज़ियादा नहीं पहना
उस ने भी कई रोज़ से ख़्वाहिश नहीं ओढ़ी
मैं ने भी कई दिन से इरादा नहीं पहना
दौड़े हैं मगर सेहन से बाहर नहीं दौड़े
घर ही में रहे पाँव में जादा नहीं पहना
आबाद हुए जब से यहाँ तंग-नज़र लोग
इस शहर ने माहौल कुशादा नहीं पहना
दरवेश नज़र आता था हर हाल में लेकिन
'साजिद' ने लिबास इतना भी सादा नहीं पहना
ग़ज़ल
इस साल शराफ़त का लिबादा नहीं पहना
इक़बाल साजिद