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इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं | शाही शायरी
is rah-e-mohabbat mein to aazar mile hain

ग़ज़ल

इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं

हकीम नासिर

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इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं
फूलों की तमन्ना थी मगर ख़ार मिले हैं

अनमोल जो इंसाँ था वो कौड़ी में बिका है
दुनिया के कई ऐसे भी बाज़ार मिले हैं

जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाज़ा
वो कौन हैं फूलों के जिन्हें हार मिले हैं

मालिक ये दिया आज हवाओं से बचाना
मौसम है अजब आँधी के आसार मिले हैं

दुनिया में फ़क़त एक ज़ुलेख़ा ही नहीं थी
हर यूसुफ़-ए-सानी के ख़रीदार मिले हैं

अब उन के न मिलने की शिकायत न गिला है
हम जब भी मिले ख़ुद से तो बे-ज़ार मिले हैं

'नासिर' ये तमन्ना थी मोहब्बत से मिलेंगे
वो जब भी मिले बर-सर-ए-पैकार मिले हैं