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इस क़दर पाएमाल हैं हम लोग | शाही शायरी
is qadar paemal hain hum log

ग़ज़ल

इस क़दर पाएमाल हैं हम लोग

शातिर हकीमी

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इस क़दर पाएमाल हैं हम लोग
आप अपनी मिसाल हैं हम लोग

बे-नियाज़-ए-मलाल हैं हम लोग
लाख सैद-ए-ज़वाल हैं हम लोग

अपने इस्याँ की शर्मसारी से
पैकर-ए-इंफ़िआल हैं हम लोग

इक फ़साना है शौकत-ए-माज़ी
देख लो ख़स्ता-हाल हैं हम लोग

बुत-कदे में अज़ाँ न दें तो सही
यादगारी बिलाल हैं हम लोग

क्यूँ परेशाँ है ऐ दिल-ए-महज़ूँ
दौलत-ए-ला-ज़वाल हैं हम लोग

हम से रौशन है आसमान-ए-अदब
ग़ैरत-ए-सद-हिलाल हैं हम लोग

इक मुअम्मा है ज़िंदगी 'शातिर'
क्या अनोखा सवाल हैं हम लोग