इस क़दर पाएमाल हैं हम लोग
आप अपनी मिसाल हैं हम लोग
बे-नियाज़-ए-मलाल हैं हम लोग
लाख सैद-ए-ज़वाल हैं हम लोग
अपने इस्याँ की शर्मसारी से
पैकर-ए-इंफ़िआल हैं हम लोग
इक फ़साना है शौकत-ए-माज़ी
देख लो ख़स्ता-हाल हैं हम लोग
बुत-कदे में अज़ाँ न दें तो सही
यादगारी बिलाल हैं हम लोग
क्यूँ परेशाँ है ऐ दिल-ए-महज़ूँ
दौलत-ए-ला-ज़वाल हैं हम लोग
हम से रौशन है आसमान-ए-अदब
ग़ैरत-ए-सद-हिलाल हैं हम लोग
इक मुअम्मा है ज़िंदगी 'शातिर'
क्या अनोखा सवाल हैं हम लोग
ग़ज़ल
इस क़दर पाएमाल हैं हम लोग
शातिर हकीमी