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इस क़दर महव-ए-तसव्वुर हूँ सितमगर तेरा | शाही शायरी
is qadar mahw-e-tasawwur hun sitamgar tera

ग़ज़ल

इस क़दर महव-ए-तसव्वुर हूँ सितमगर तेरा

फ़रोग़ हैदराबादी

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इस क़दर महव-ए-तसव्वुर हूँ सितमगर तेरा
मुझ को ग़ुर्बत में नज़र आने लगा घर तेरा

नश्शा-ए-मय की बुझी प्यास न कुछ भी अफ़सोस
नाम सुनते थे बड़ा चश्मा-ए-कौसर तेरा

अपने पामाली-ए-दिल का मुझे अफ़सोस नहीं
देख ज़ालिम न बिगड़ जाए कहीं घर तेरा

वो भी हैं लोग जो हम-बज़्म रहा करते थे
हम तो जीते हैं फ़क़त नाम ही ले कर तेरा

जल्वा-ए-तूर को कुछ उस की नज़र से भाँपा
जिस ने देखा है जमाल-ए-रुख़-ए-अनवर तेरा

ज़िंदगी उस की नसीब उस के हैं रातें उस की
जिस को हो जल्वा-ए-दीदार मयस्सर तेरा

हम ने कोशिश तो बहुत की थी उसे लाने की
ऐ 'फ़रोग़'-ए-जिगर-अफ़्गार मुक़द्दर तेरा