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इस को पहली बार ख़त लिक्खा तो दिल धड़का बहुत | शाही शायरी
isko pahli bar KHat likkha to dil dhaDka bahut

ग़ज़ल

इस को पहली बार ख़त लिक्खा तो दिल धड़का बहुत

मंज़र भोपाली

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इस को पहली बार ख़त लिक्खा तो दिल धड़का बहुत
क्या जवाब आएगा कैसे आएगा डर था बहुत

जान दे देंगे अगर दुनिया ने रोका रास्ता
और कोई हल न निकला हम ने तो सोचा बहुत

अब समझ लेते हैं मीठे लफ़्ज़ की कड़वाहटें
हो गया है ज़िंदगी का तजरबा थोड़ा बहुत

सोच लो पहले हमारे हाथ में फिर हाथ दो
इश्क़ वालों के लिए हैं आग के दरिया बहुत

वो थी आँगन में पड़ोसी के मैं घर की छत पे था
दूरियों ने आज भी दोनों को तड़पाया बहुत

इस से पहले तो कभी एहसास होता ही न था
तुझ से मिल कर सोचते हैं रो लिए तन्हा बहुत

आँख होती तो नज़र आ जाते छाले पाँव के
सच को क्या देखेगा अपना शहर है अंधा बहुत