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इस ख़ाक-दाँ में अब तक बाक़ी हैं कुछ शरर से | शाही शायरी
is KHak-dan mein ab tak baqi hain kuchh sharar se

ग़ज़ल

इस ख़ाक-दाँ में अब तक बाक़ी हैं कुछ शरर से

शकेब जलाली

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इस ख़ाक-दाँ में अब तक बाक़ी हैं कुछ शरर से
दामन बचा के गुज़रो यादों की रहगुज़र से

हर हर क़दम पे आँखें थीं फ़र्श-ए-राह लेकिन
वो रौशनी का हाला उतरा न बाम पर से

क्यूँ जादा-ए-वफ़ा पर मिशअल-ब-कफ़ खड़े हो
इस सैल-ए-तीरगी में निकलेगा कौन घर से

किस दश्त की सदा हो इतना मुझे बता दो
हर-सू बिछे हैं रस्ते आऊँ तो मैं किधर से

उजड़ा हुआ मकाँ है ये दिल जहाँ पे हर शब
परछाइयाँ लिपट कर रोती हैं बाम-ओ-दर से