इस के आगे प्यार के जज़्बों की आराइश न कर
ज़र्द रेगिस्तान में फूलों की अफ़्ज़ाइश न कर
ये तो हो सकता है कि दोनों की मंज़िल एक हो
फिर भी उस के हम-सफ़र होने की फ़रमाइश न कर
मुनहसिर उस पर भी है वो पास आए या न आए
ऐ मिरे दिल क़ुर्बतों की मुझ से फ़रमाइश न कर
हम ने माना चाँद सा रौशन तिरा महबूब है
तू मगर उस चाँद की लफ़्ज़ों से पैमाइश न कर
ख़ुद पे जो नाज़ाँ है 'अनवर' तेरी चाहत पर नहीं
उस परी-पैकर के आगे दिल की ज़ेबाइश न कर
ग़ज़ल
इस के आगे प्यार के जज़्बों की आराइश न कर
अनवर कैफ़ी