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इस के आगे प्यार के जज़्बों की आराइश न कर | शाही शायरी
is ke aage pyar ke jazbon ki aaraish na kar

ग़ज़ल

इस के आगे प्यार के जज़्बों की आराइश न कर

अनवर कैफ़ी

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इस के आगे प्यार के जज़्बों की आराइश न कर
ज़र्द रेगिस्तान में फूलों की अफ़्ज़ाइश न कर

ये तो हो सकता है कि दोनों की मंज़िल एक हो
फिर भी उस के हम-सफ़र होने की फ़रमाइश न कर

मुनहसिर उस पर भी है वो पास आए या न आए
ऐ मिरे दिल क़ुर्बतों की मुझ से फ़रमाइश न कर

हम ने माना चाँद सा रौशन तिरा महबूब है
तू मगर उस चाँद की लफ़्ज़ों से पैमाइश न कर

ख़ुद पे जो नाज़ाँ है 'अनवर' तेरी चाहत पर नहीं
उस परी-पैकर के आगे दिल की ज़ेबाइश न कर