इस कार-ए-गह-ए-रंग में हम तंग नहीं क्या
जो सर पे लगा है अभी वो संग नहीं क्या
तस्वीर को तस्वीर दिखाई नहीं जाती
इस आइना-ख़ाने में नज़र दंग नहीं क्या
है हल्का-ए-जाँ अपनी वफ़ाओं का तसव्वुर
इस दाग़ से आगे कोई फ़रसंग नहीं क्या
हर बात पे हम देते हैं ग़ैरों का हवाला
अपना कोई आहंग कोई रंग नहीं क्या
बख़्शे हुए इक घूँट पे हम झूम रहे हैं
अब माँग के पीना भी कोई नंग नहीं क्या
ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब है हाथों में निवाला
इस बात पे दुनिया से मिरी जंग नहीं क्या
वो रंग नहीं शो'ला-ए-एहसास में 'बाक़ी'
हम साज़-ए-तमन्ना से हम-आहंग नहीं क्या
ग़ज़ल
इस कार-ए-गह-ए-रंग में हम तंग नहीं क्या
बाक़ी सिद्दीक़ी