इस घर में मिरे साथ बसर कर के तो देखो
टूटी हुई कश्ती में सफ़र कर के तो देखो
धरती से बिछड़ने की सज़ा कहते हैं किस को
तूफ़ाँ में जज़ीरों पे नज़र कर के तो देखो
ख़्वाबों को सलीबों पे सजा पाओगे हर सू
आँखों के बयाबाँ से गुज़र कर के तो देखो
मुमकिन है कि नेज़े पे उठा ले कोई बढ़ कर
मक़्तल के हवाले ज़रा सर कर के तो देखो
शायद के उभर आएँ घरों के दर-ओ-दीवार
उस राख को तुम अश्कों से तर कर के तो देखो
ग़ज़ल
इस घर में मिरे साथ बसर कर के तो देखो
शकील शम्सी