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इस ए'तिबार से वो ज़ूद-रंज अच्छा है | शाही शायरी
is etibar se wo zud-ranj achchha hai

ग़ज़ल

इस ए'तिबार से वो ज़ूद-रंज अच्छा है

राशिद मुराद

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इस ए'तिबार से वो ज़ूद-रंज अच्छा है
ख़फ़ा भी हो तो मिरे साथ साथ रहता है

मैं आफ़्ताब-ए-बदन का क़सीदा लिखता हूँ
वो मेरी रूह को पोशाक-ए-नूर देता है

असा-ए-सब्र से रस्ता बना लिया हम ने
कभी जो राह में दरिया-ए-जब्र आया है

सर-ए-निगाह भी 'राशिद' धनक धनक पैकर
पस-ए-सहाब भी इक चाँद चाँद साया है