इस दिल में अपनी जान कभी है कभी नहीं
आबाद ये मकान कभी है कभी नहीं
ग़ैरों की बात क्या कहूँ इस की तो याद में
अपना भी मुझ को धियान कभी है कभी नहीं
वो दिन गए जो करते थे हम मुत्तसिल फ़ुग़ाँ
अब आह-ए-ना-तवान कभी है कभी नहीं
जिस आन में रहे तू उसे जान मुग़्तनिम
याँ की हर एक आन कभी है कभी नहीं
अय्याम-ए-वस्ल पर तो भरोसा न कीजियो
ये वक़्त मेरी जान कभी है कभी नहीं
आदत जो है हमेशा से उस की सो है ग़रज़
वो हम पे मेहरबान कभी है कभी नहीं
इस दोस्ती का तेरी तलव्वुन-मिज़ाजी से
अपने तईं गुमान कभी है कभी नहीं
मग़रूर होजियो न इस औज-ओ-हशम पे तू
याँ की ये इज़्ज़-ओ-शान कभी है कभी नहीं
आशिक़ कहीं हुआ है 'हसन' क्या है उस का हाल
ये आप में जवान कभी है कभी नहीं
ग़ज़ल
इस दिल में अपनी जान कभी है कभी नहीं
मीर हसन