इस दीवाने दिल को देखो क्या शेवा अपनाए है
उस पर ही विश्वास करे है जिस से धोका खाए है
सारा कलेजा कट कट कर जब अश्कों में बह जाए है
तब कोई फ़रहाद बने है तब मजनूँ कहलाए है
मैं जो तड़प कर रोऊँ हूँ तो ज़ालिम यूँ फ़रमाए है
इतना गहरा घाव कहाँ है नाहक़ शोर मचाए है
तुम ने मुझ को रंज दिया तो इस में तुम्हारा दोश नहीं
फूल भी काँटा बन जाए है वक़्त बुरा जब आए है
ग़ज़ल
इस दीवाने दिल को देखो क्या शेवा अपनाए है
हफ़ीज़ मेरठी