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इस दौर की पलकों पे हैं आँसू की तरह हम | शाही शायरी
is daur ki palkon pe hain aansu ki tarah hum

ग़ज़ल

इस दौर की पलकों पे हैं आँसू की तरह हम

क़ैसर-उल जाफ़री

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इस दौर की पलकों पे हैं आँसू की तरह हम
कुछ देर में उड़ जाएँगे ख़ुशबू की तरह हम

बढ़ कर किसी दामन ने भी हम को न सँभाला
आँखों से टपकते रहे आँसू की तरह हम

किस फूल से बिछड़े हैं कि फिरते हैं परेशाँ
जंगल में भटकती हुई ख़ुशबू की तरह हम

अब दिन के उजाले में हमें कौन पुकारे
चमके थे कभी रात में जुगनू की तरह हम

हर मोड़ पे आईं तिरे दामन की हवाएँ
हर छाँव को समझे तिरे गेसू की तरह हम

'क़ैसर' हमें दुनिया ने समझ कर भी न समझा
उलझे ही रहे काकुल-ए-उर्दू की तरह हम