इस दश्त-ए-हलाकत से गुज़र कौन करेगा
बे-अम्न ख़राबों में सफ़र कौन करेगा
ख़ुर्शीद जो डूबेंगे उभरने ही से पहले
इस तीरगी-ए-शब की सहर कौन करेगा
छिन जाएँ सर-ए-राह जहाँ चादरें सर की
उस ज़ुल्म की नगरी में बसर कौन करेगा
जिस दौर में हो बे-हुनरी वज्ह-ए-सियादत
उस दौर में तशहीर-ए-हुनर कौन करेगा
उड़ जाएँगे जंगल की तरफ़ सारे परिंदे
मीनारा-ए-लर्ज़ां पे बसर कौन करेगा
इस ख़ौफ़-ए-मुसलसल में गुज़र होगी तो क्यूँकर
सूली पे हर इक रात बसर कौन करेगा
मुज़्दा मुझे जीने का भला किस ने दिया था
मुझ को मिरे मरने की ख़बर कौन करेगा
ग़ज़ल
इस दश्त-ए-हलाकत से गुज़र कौन करेगा
परतव रोहिला