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इस बुलंदी पे कहाँ थे पहले | शाही शायरी
is bulandi pe kahan the pahle

ग़ज़ल

इस बुलंदी पे कहाँ थे पहले

अज़हर इनायती

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इस बुलंदी पे कहाँ थे पहले
अब जो बादल हैं धुआँ थे पहले

नक़्श मिटते हैं तो आता है ख़याल
रेत पर हम भी कहाँ थे पहले

अब हर इक शख़्स है एज़ाज़ तलब
शहर में चंद मकाँ थे पहले

आज शहरों में हैं जितने ख़तरे
जंगलों में भी कहाँ थे पहले

लोग यूँ कहते हैं अपने क़िस्से
जैसे वो शाह-जहाँ थे पहले

टूट कर हम भी मिला करते थे
बेवफ़ा तुम भी कहाँ थे पहले