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इस बज़्म में पाते नहीं दिल-सोज़ किसी को | शाही शायरी
is bazm mein pate nahin dil-soz kisi ko

ग़ज़ल

इस बज़्म में पाते नहीं दिल-सोज़ किसी को

शऊर बलगिरामी

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इस बज़्म में पाते नहीं दिल-सोज़ किसी को
याँ शम्अ हमारी है न परवाना हमारा

किस के रुख़-ए-रौशन का तसव्वुर है ये दिल में
है मंज़िल-ए-ख़ुर्शीद सियह-ख़ाना हमारा

नासेह की नसीहत से है ज़िद और भी दिल को
सुनता नहीं होश्यार की दीवाना हमारा

दिल ले चुके फिर बोसे की तकरार है भेजा
दो जिंस ही या फेर दो बैआना हमारा

हम ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरह से हैं परेशाँ
अब दम की कशाकश है फ़क़त शाना हमारा

सौ आरज़ू-ए-मुर्दा को रक्खा है जो दिल में
तकिया है मक़ाबिर का ये वीराना हमारा