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इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे | शाही शायरी
is bazm mein na hosh rahega zara mujhe

ग़ज़ल

इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे

बेखुद बदायुनी

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इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे
ऐ शौक़-ए-हरज़ा-ताज़ कहाँ ले चला मुझे

ये दर्द-ए-दिल ही ज़ीस्त का बाइस है चारा-गर
मर जाऊँगा जो आई मुआफ़िक़ दवा मुझे

इस ज़ौक़-ए-इब्तिला का मज़ा उस के दम से है
सब कुछ मिला मिला हो दिल-ए-मुब्तला मुझे

दैर-ओ-हरम को देख लिया ख़ाक भी नहीं
बस ऐ तलाश-ए-यार न दर दर फिरा मुझे

ये दिल से दूर हो न दिखाए ख़ुदा वो दिन
ज़ालिम तिरा ख़याल है दिल से सिवा मुझे

रंज-ओ-मलाल ओ हसरत-ओ-अरमान-ओ-आरज़ू
जाने से एक दिल के बहुत कुछ मिला मुझे

मैं जानता हूँ आप हैं मस्त अपने हाल में
'बेख़ुद' नहीं है आप से मुतलक़ गिला मुझे