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इरफ़ान है ये इश्क़ के सोज़-ओ-गुदाज़ का | शाही शायरी
irfan hai ye ishq ke soz-o-gudaz ka

ग़ज़ल

इरफ़ान है ये इश्क़ के सोज़-ओ-गुदाज़ का

तालिब बाग़पती

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इरफ़ान है ये इश्क़ के सोज़-ओ-गुदाज़ का
पर्दा उठा रहा है कोई इम्तियाज़ का

तारों से पूछिए मिरी आँखों को देखिए
दुनिया को क्या पता शब-ए-हिज्र-ए-दराज़ का

जाने से क़ब्ल तूर पे मूसा ये देखते
क्या ज़र्फ़ है हवास तजल्ली-नवाज़ का

सब सुर्ख़ियाँ हैं ख़ून-ए-वफ़ा सी लिखी हुई
क़िस्सा है दिल-गुदाज़ शहीद-ए-नियाज़ का

सर बे-ख़ुदी में आप के क़दमों पे झुक गया
आया था कुछ ख़याल सा दिल में नमाज़ का

आँखें झुका नज़र न मिला दिल पे तीर खा
पहला सबक़ है इश्क़ के राज़-ओ-नियाज़ का

महफ़िल में देखते हैं वो तस्वीर की तरह
मरकज़ है हर नफ़स निगह-ए-इम्तियाज़ का

देखा फिर उस ने क़ल्ब की फिर हरकतें बढ़ीं
ज़ख़मा बनी है फिर निगह-ए-नाज़ साज़ का

ज़र्फ़ आज़माए सोज़िश-ए-सद-बर्क़-ए-तूर से
लीजे न इम्तिहान दिल-ए-बे-नियाज़ का

'तालिब' अगर नज़र न हो पामाल-ए-ख़्वाहिशात
हर लमआ बर्क़-ए-तूर है हुस्न-ए-मजाज़ का