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इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन | शाही शायरी
iqrar kisi din hai to inkar kisi din

ग़ज़ल

इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन

बद्र वास्ती

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इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन
हो जाएगी अब आप से तकरार किसी दिन

चाहा कभी सोचा कभी तस्वीर बनाई
छोड़ा न तिरी याद ने बेकार किसी दिन

पलकों पे सितारे लिए राहों में खड़े हैं
फ़ुर्सत हो तो आ जाइए सरकार किसी दिन

दुनिया में सदा चलती है चाहत की हुकूमत
आ जाओ मना लेंगे हम इतवार किसी दिन

आया है अकेला तुझे जाना है अकेला
बस देखते रह जाएँगे सब यार किसी दिन

दौलत के ये अम्बार तिरा साथ न देंगे
गिर जाएगी नादान ये दीवार किसी दिन

अच्छी नहीं लगती हमें आदत ये तिरी 'बद्र'
हर बार कभी और तो हर बार किसी दिन