इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन
हो जाएगी अब आप से तकरार किसी दिन
चाहा कभी सोचा कभी तस्वीर बनाई
छोड़ा न तिरी याद ने बेकार किसी दिन
पलकों पे सितारे लिए राहों में खड़े हैं
फ़ुर्सत हो तो आ जाइए सरकार किसी दिन
दुनिया में सदा चलती है चाहत की हुकूमत
आ जाओ मना लेंगे हम इतवार किसी दिन
आया है अकेला तुझे जाना है अकेला
बस देखते रह जाएँगे सब यार किसी दिन
दौलत के ये अम्बार तिरा साथ न देंगे
गिर जाएगी नादान ये दीवार किसी दिन
अच्छी नहीं लगती हमें आदत ये तिरी 'बद्र'
हर बार कभी और तो हर बार किसी दिन
ग़ज़ल
इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन
बद्र वास्ती