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इंतिज़ार की हद तक इंतिज़ार करना था | शाही शायरी
intizar ki had tak intizar karna tha

ग़ज़ल

इंतिज़ार की हद तक इंतिज़ार करना था

तमीज़ुद्दीन तमीज़ देहलवी

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इंतिज़ार की हद तक इंतिज़ार करना था
ए'तिबार की हद तक ए'तिबार करना था

हाल-ए-दिल तो कहना था मुख़्तसर मगर क़ासिद
इख़्तिसार की हद तक इख़्तिसार करना था

ख़्वाब हो कि बेदारी-ए-आह-ओ-नाला-ओ-ज़ारी
इख़्तियार की हद तक इख़्तियार करना था

उस ने हस्ब-ए-आसाइश की अदू को फ़हमाइश
ख़ाकसार की हद तक ख़ाकसार करना था

ना'श भी मिरी उस ने क़ब्र में न रहने दी
बे-दयार की हद तक बे-दयार करना था

यास हो कि सरमस्ती चाक जामा-ए-हस्ती
तार तार की हद तक तार तार करना था

ऐ 'तमीज़' यारों पर ना-तवाँ सहारों पर
इंहिसार की हद तक इंहिसार करना था