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इंतिख़ाब-ए-निगह-ए-शौक़ को मुश्किल भी नहीं | शाही शायरी
intiKHab-e-nigah-e-shauq ko mushkil bhi nahin

ग़ज़ल

इंतिख़ाब-ए-निगह-ए-शौक़ को मुश्किल भी नहीं

फ़ितरत अंसारी

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इंतिख़ाब-ए-निगह-ए-शौक़ को मुश्किल भी नहीं
कोई आईना तिरा आज मुक़ाबिल भी नहीं

कौन से गुल की ख़बर बाद-ए-सहर लाई है
सेहन-ए-गुलशन में कहीं शोर-ए-अनादिल भी नहीं

जाने अब कौन सी मंज़िल में में अरबाब-ए-जुनूँ
दूर तक दश्त में आवाज़-ए-सलासिल भी नहीं

तीर आते हैं कमीं-गाह से मेरी जानिब
मेरी तक़दीर में क्या जल्वा-ए-क़ातिल भी नहीं

तुझ से और चश्म-ए-तवज्जोह का गिला क्या मा'नी
तेरा फ़ितरत तिरे इख़्लास के क़ाबिल भी नहीं