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इंसान नहीं वो जो गुनहगार नहीं हैं | शाही शायरी
insan nahin wo jo gunahgar nahin hain

ग़ज़ल

इंसान नहीं वो जो गुनहगार नहीं हैं

डी. राज कँवल

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इंसान नहीं वो जो गुनहगार नहीं हैं
वो कौन सा गुलशन है जहाँ ख़ार नहीं हैं

जो लोग मोहब्बत में गिरफ़्तार नहीं हैं
वो लोग हक़ीक़त के परस्तार नहीं हैं

दुनिया में मयस्सर है अभी जिंस-ए-मोहब्बत
सद हैफ़ कि पहले से ख़रीदार नहीं हैं

टूटे हैं न टूटेंगे कभी बोझ से ग़म के
नाज़ुक हैं मगर रेत की दीवार नहीं हैं

दिल शौक़ से दें आप मगर सोच समझ कर
दुनिया में सभी लोग वफ़ादार नहीं हैं

जब अज़्म-ए-सफ़र कर ही लिया आओ चलें हम
तूफ़ान के थमने के तो आसार नहीं हैं

चढ़ता है 'कँवल' कौन सलीबों पे ख़ुशी से
सब लोग मसीहा के तो अवतार नहीं हैं