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इंजील-ए-रफ़्तगाँ की हदीसों के साथ हूँ | शाही शायरी
injil-e-raftagan ki hadison ke sath hun

ग़ज़ल

इंजील-ए-रफ़्तगाँ की हदीसों के साथ हूँ

नसीर तुराबी

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इंजील-ए-रफ़्तगाँ की हदीसों के साथ हूँ
ईसा-नफ़स हूँ और सलीबों के साथ हूँ

पाबंद-ए-रंग-ओ-नक़्श हूँ तस्वीर की तरह
मैं बे-हिजाब अपने हिजाबों के साथ हूँ

औराक़-ए-आरज़ू पे ब-उन्वान-ए-जाँ-कनी
मैं बे-निशाँ सी चंद लकीरों के साथ हूँ

शायद ये इंतिज़ार की लौ फ़ैसला करे
मैं अपने साथ हूँ कि दरीचों के साथ हूँ

तू फ़तह-मंद मेरा तराशा हुआ सनम
मैं बुत-तराश अपनी शिकस्तों के साथ हूँ

मौज-ए-सबा की ज़द पे सर-ए-रहगुज़ार-ए-शौक़
मैं भी 'नसीर' घर के चराग़ों के साथ हूँ