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इन मकानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं | शाही शायरी
in makanon se bahut dur bahut dur kahin

ग़ज़ल

इन मकानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं

इमरान शमशाद

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इन मकानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं
चल ज़मानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं

ख़्वाब सा एक जहाँ है कि जहाँ सब कुछ है
इन जहानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं

मेरे इम्कान ने देखी है किनारे की झलक
बादबानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं

क़िस्सा-गो अपने तख़य्युल में निकल जाता है
दास्तानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं

आओ जीने की कोई राह निकालें 'इमरान'
कार-ख़ानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं

एक घर मुझ को बुलाता है मेरे पास आओ
इन मकानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं