इन की जब नुक्ता-वरी याद आई 
अपनी ही बे-ख़बरी याद आई 
याद आई भी तो यूँ अहद-ए-वफ़ा 
आह की बे-असरी याद आई 
आज क्यूँ उन को ब-आग़ोश-ए-रक़ीब 
मेरी ही हम-असरी याद आई 
दिल ने फिर वक़्त से लड़ना चाहा 
फिर वही दर्द-भरी याद आई 
अपना सीना हुआ रौशन तो उन्हें 
हुस्न की कम-नज़री याद आई 
जब भी ध्यान आया कहीं मंज़िल का 
राह की शब-बसरी याद आई 
किस को हासिल है दिमाग़-ए-नाला 
बे-सबब बे-हुनरी याद आई 
देख कर बे-दिली-ए-शौक़ का रंग 
अपनी आशुफ़्ता-सरी याद आई 
उस पे क्या गुज़री जो इस आलम में 
फूल को जामा-दरी याद आई 
बाग़ का हाल वो देखा है 'नज़र' 
शाख़ थी जो भी हरी याद आई
        ग़ज़ल
इन की जब नुक्ता-वरी याद आई
क़य्यूम नज़र

