इन अश्कों को पानी कहना भूल नहीं नादानी है 
तन-मन में जो आग लगा दे ये तो ऐसा पानी है 
हिज्र की घड़ियाँ देख चुके हैं मौत का हम को ख़ौफ़ नहीं 
ये सूरत तो देखी-भाली है जानी-पहचानी है 
कैसे तुम से इश्क़ हुआ था क्या क्या हम पर बीत रही है 
सुन लो तो सच्चा अफ़्साना वर्ना एक कहानी है 
मुफ़्लिस बंदों पर मत हँसना धन-दौलत के पहरेदारो 
ये दुनिया है इस दुनिया की हर शय आनी-जानी है 
शैख़-ओ-बरहमन ज़ाहिद-ओ-वाइ'ज़ बूढ़े-खूसट क्या जानें 
भूल भी हो जाती है इस में इस का नाम जवानी है
        ग़ज़ल
इन अश्कों को पानी कहना भूल नहीं नादानी है
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर

