EN اردو
इम्कान से बाहर कभी आसार से आगे | शाही शायरी
imkan se bahar kabhi aasar se aage

ग़ज़ल

इम्कान से बाहर कभी आसार से आगे

ख़ालिद कर्रार

;

इम्कान से बाहर कभी आसार से आगे
महशर है मिरे दीदा-ए-ख़ूँ-बार से आगे

इरफ़ान की हद या मिरे पैकर की शरारत
निकला मिरा साया मिरी दस्तार से आगे

इक जिंस-ज़दा नस्ल है तहज़ीब के पीछे
बाज़ार है इक कूचा-ओ-बाज़ार से आगे

सूरज है शब-ओ-रोज़ तआक़ुब में वगरना
है और बहुत रात के असरार से आगे

हम लोग कि मंज़िल के भुलावे के गिरफ़्तार
आसार से पीछे कभी आसार से आगे