EN اردو
इल्ज़ाम बता कौन मिरे सर नहीं आया | शाही शायरी
ilzam bata kaun mere sar nahin aaya

ग़ज़ल

इल्ज़ाम बता कौन मिरे सर नहीं आया

ज़ाहिदुल हक़

;

इल्ज़ाम बता कौन मिरे सर नहीं आया
हिस्से में मिरे कौन सा पत्थर नहीं आया

हम जो भी हुए हैं बड़ी मेहनत से हुए हैं
काम अपने कभी अपना मुक़द्दर नहीं आया

कुछ और नहीं बस ये तो मिट्टी का असर है
ज़ालिम को कभी कहना हुनर-वर नहीं आया

दिल का सभी दरवाज़ा खुला रक्खा है मैं ने
पर उस को न आना था सितमगर नहीं आया

मुँह मोड़ लिया तुम ने तो ये हाल हुआ है
वो घर से गया ऐसे कि फिर घर नहीं आया

ग़ज़लें तो बहुत कहते हो लेकिन मियाँ 'ज़ाहिद'
अब तक तुम्हें बनना भी सुख़नवर नहीं आया