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इलाही कोई हवा का झोंका दिखा दे चेहरा उड़ा के आँचल | शाही शायरी
ilahi koi hawa ka jhonka dikha de chehra uDa ke aanchal

ग़ज़ल

इलाही कोई हवा का झोंका दिखा दे चेहरा उड़ा के आँचल

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

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इलाही कोई हवा का झोंका दिखा दे चेहरा उड़ा के आँचल
कि झाँकता भी है वो सितम-गर तो खड़खड़ी में लगा के आँचल

ज़रूर ढाएगा कोई आफ़त ज़रूर फ़ित्ना बपा करेगा
ये तेरा अटखेलियों से चलना झुका के गर्दन उठा के आँचल

जो तुम को मंज़ूर है फिर आना तुम्हीं कहो फिर ये कैसा जाना
जता के ग़ुस्सा सुना के बातें चढ़ा के तेवरी छुड़ा के आँचल

ज़माना फ़ुर्क़त का जाए या-रब वो वक़्त वो दिन भी आए या-रब
अदा करूँ मैं तिरा दोगाना खड़े रहें वो बिछा के आँचल

ज़रूर हैं कुछ न कुछ कशीदा कि रहते हैं दूर दूर हम से
जो पास भी आ के बैठते हैं तो ज़ेर-ए-ज़ानू दबा के आँचल

तुम्हें है साहिब लिहाज़ किस का ये कोसना चुपके चुपके कैसा
दुआ करूँ मैं रगड़ के माथा कहो तुम आमीन उठा के आँचल

तिरा ये बूटा सा क़द क़यामत पे चाल मतवाली आफ़त आफ़त
ये प्यारी सूरत सितम दुपट्टा ग़ज़ब की रंगत बला के आँचल

समझ ले ये दिल में 'आसमाँ' तू वो लोट हैं तेरे लोटने पर
जो ओढ़ कर लटपटा दुपट्टा लुटाते हैं अदबदा के आँचल