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इक यही रौशनी रौशनी इम्कान में है | शाही शायरी
ek yahi raushni raushni imkan mein hai

ग़ज़ल

इक यही रौशनी रौशनी इम्कान में है

फ़रहत अब्बास शाह

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इक यही रौशनी रौशनी इम्कान में है
तू अभी तक दिल-ए-वीरान में है

शोर बरपा है तिरी यादों का
रौनक़-ए-हिज्र बयाबान में है

प्यार और ज़िंदगी से लगता है
कोई ज़िंदा-दिली बे-जान में है

आज भी तेरे बदन की ख़ुश्बू
तेरे भेजे हुए गुल-दान में है

ज़िंदगी भी है मिरी आँखों में
मौत भी दीदा-ए-हैरान में है

दिल अभी निकला नहीं सीने से
एक क़ैदी अभी ज़िंदान में है