इक यादगार चाहिए कोई निशाँ रहे
तुर्बत मिरी रहे न रहे आसमाँ रहे
क्यूँ दूद-ए-आह नीम-शबी राएगाँ रहे
इक और आसमाँ न ता-आसमाँ रहे
कोसों निशान-ए-मंज़िल-ए-उल्फ़त निकल गए
हम महव-ए-नग़्मा-ए-जरस-कारवाँ रहे
दिल इंतिहा-पसंद है शौक़-ए-जफ़ा नहीं
वो मेहरबाँ रहे तो बहुत मेहरबाँ रहे
जौर-ओ-जफ़ा-ए-दौर-ए-फ़लक हैं ब-क़द्र-ए-इश्क़
अब जिस क़दर किसी पे कोई मेहरबाँ रहे
अल-मुख़्तसर हयात तड़पने का नाम है
पहलू में दिल रहे कि ख़याल-ए-बुताँ रहे
सोज़-ए-फ़ुग़ाँ ने आह क़फ़स भी जला दिया
अब आदी-ए-क़ुयूद बताओ कहाँ रहे
रंगीनी-ए-जमाल फ़रेब-ए-ख़याल है
'तालिब' वगर्ना दिल में तमन्ना कहाँ रहे
ग़ज़ल
इक यादगार चाहिए कोई निशाँ रहे
तालिब बाग़पती