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इक वहशत सी दर आई है आँखों में | शाही शायरी
ek wahshat si dar aai hai aankhon mein

ग़ज़ल

इक वहशत सी दर आई है आँखों में

ताहिर अज़ीम

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इक वहशत सी दर आई है आँखों में
अपनी सूरत धुँदलाई है आँखों में

आज चमन का हाल न पूछो हम-नफ़सो
आज ख़िज़ाँ की रुत आई है आँखों में

बरसों पहले जिस दरिया में उतरा था
अब तक उस की गहराई है आँखों में

इन बातों पर मत जाना जो आम हुईं
देखो कितनी सच्चाई है आँखों में

इन में अब भी हर्फ़-ए-मोहब्बत बस्ता है
इसी लिए तो गहराई है आँखों में

हाथ पकड़ कर जिस का चलना सीखा है
उस के नाम की बीनाई है आँखों में

धूप 'अज़ीम' अब फैली है जो शिद्दत से
तो साए की रानाई है आँखों में