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इक तिरी याद से यादों के ख़ज़ाने निकले | शाही शायरी
ek teri yaad se yaadon ke KHazane nikle

ग़ज़ल

इक तिरी याद से यादों के ख़ज़ाने निकले

सबीहा सबा

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इक तिरी याद से यादों के ख़ज़ाने निकले
ज़िक्र तेरा भी भी मोहब्बत के बहाने निकले

हम ने समझा था कि दिल है तिरा मस्कन लेकिन
जाने वालों के कहीं और ठिकाने निकले

फिर मिरे कान में गूँजी हैं दुआएँ तेरी
तेरी आग़ोश में ग़म अपने छुपाने निकले

एक ख़ुशबू की तरह गाहे-ब-गाहे आना
कितने सुंदर तिरे कुछ रूप सुहाने निकले

दिल में कुछ टूटने लगता है तिरे ज़िक्र के साथ
चंद आँसू तिरी उल्फ़त के बहाने निकले

मैं तो इक रूप हूँ तेरा यही काफ़ी है 'सबा'
अब इसी रंग से इस दिल को सजाने निकले