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इक तरन्नुम सा मिरे पावँ की ज़ंजीर में है | शाही शायरी
ek tarannum sa mere paon ki zanjir mein hai

ग़ज़ल

इक तरन्नुम सा मिरे पावँ की ज़ंजीर में है

नूर बिजनौरी

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इक तरन्नुम सा मिरे पावँ की ज़ंजीर में है
फिर कोई फ़स्ल-ए-बहाराँ मिरी तक़दीर में है

झिलमिलाते हैं सितारे कि दिए जुलते हैं
कुछ उजाला सा तिरी ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर में है

कुछ तिरा हुस्न भी है सादा-ओ-मासूम बहुत
कुछ मिरा प्यार भी शामिल तिरी तस्वीर में है

और बढ़ती है इसी शख़्स की चाहत नासेह
ये करामात अजब आप की तक़रीर में है

अपनी खोई हुई छीनी हुई जन्नत का सुराग़
हल्का-ए-दार में है जुम्बिश-ए-शमशीर में है

मैं जो चाहूँ तो पिघल जाएँ जुदाई के पहाड़
ये भी तासीर मिरे नाला-ए-शब-गीर में है

माह-ओ-ख़ुरशीद ज़मीं पर नहीं उतरे अब तक
मेरा हर ख़्वाब अभी पर्दा-ए-ता'बीर में है