इक तमन्ना है ख़मोशी के कटहरे कितने
दिल की दहलीज़ पे एहसास के पहरे कितने
कितने गहरे हैं कि इक उम्र लगी भरने में
वैसे लगते हैं सभी ज़ख़्म इकहरे कितने
सब ने देखे मिरे होंटों पे तबस्सुम के गुलाब
किस ने देखा है मिरे ज़ख़्म हैं गहरे कितने
कितने अरमाँ का लहू इन में बसा है 'सय्यद'
यूँ तो लगते हैं सभी ख़्वाब सुनहरे कितने
ग़ज़ल
इक तमन्ना है ख़मोशी के कटहरे कितने
सय्यद शकील दस्नवी