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इक शरार-ए-गिरफ़्ता-रंग हूँ मैं | शाही शायरी
ek sharar-e-girafta-rang hun main

ग़ज़ल

इक शरार-ए-गिरफ़्ता-रंग हूँ मैं

सहर अंसारी

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इक शरार-ए-गिरफ़्ता-रंग हूँ मैं
फूल से ले के ता-ब-संग हूँ मैं

बाद-ए-सरसर की तरह गर्म-ए-इनाँ
सीना-ए-रेग की उमंग हूँ मैं

ज़र्रे ज़र्रे ने कर दिया हैराँ
और हैरानियों पे दंग हूँ मैं

फ़त्ह भी इक शिकस्त ही होगी
आरज़ूओं से महव-ए-जंग हूँ मैं

कैसे तुझ को बहा के ले जाऊँ
मौज-ए-हम-साया-ए-निहंग हूँ मैं

शहर-ओ-सहरा की कुछ नहीं तख़सीस
वुसअ'त-ए-दश्त-ए-जाँ से तंग हूँ मैं

किस ने देखा फ़िशार-ए-मौजा-ए-जाँ
आज तक आब-ए-ज़ेर-ए-संग हूँ मैं