इक सर्द-जंग का है असर मेरे ख़ून में
एहसास हो रहा है दिसम्बर का जून में
किस ने हिलाई आज ये ज़ंजीर-ए-आगही
एक शोर सा बपा है मेरे अंदरून में
ये और बात ख़ुद को बिखरने नहीं दिया
यादें ख़लल तो डाल रहीं थीं सुकून में
मेरा तुम्हारे हिज्र ने ये हाल कर दिया
शब को तुम्हारी शक्ल नज़र आई मून में
तोहफ़ा मिरे ख़ुलूस ने ऐसा दिया 'सबीन'
धड़कन में जोश है न हरारत है ख़ून में
ग़ज़ल
इक सर्द-जंग का है असर मेरे ख़ून में
ग़ौसिया ख़ान सबीन