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इक साया-दार पेड़ को जड़ से उखाड़ के | शाही शायरी
ek saya-dar peD ko jaD se ukhaD ke

ग़ज़ल

इक साया-दार पेड़ को जड़ से उखाड़ के

मरातिब अख़्तर

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इक साया-दार पेड़ को जड़ से उखाड़ के
क्या मिल गया तुझे मिरी दुनिया उजाड़ के

अब और इंतिज़ार कर ऐ खोखले बदन
मैं आ रहा हूँ मद्द-ए-मुक़ाबिल पछाड़ के

तन्हा मुझे बसीत ख़ला में उड़ा दिया
हम-ज़ाद ने बयाज़-ए-तसलसुल से फाड़ के

क्यूँ चाँद की तरफ़ हैं रवाँ कम-निगाह लोग
दिल की रिदा से अज़्मत-ए-पस्ती को झाड़ के

उस ख़ुद-नुमा की रिफ़अ'त-ए-बुनियाद देखिए
पाँव ज़मीन-बोस हैं ऊँचे पहाड़ के

शोहरत की आग अस्ल में इक नक़्श-ए-दूद थी
बुझ कर बिखर गई तिरा हुलिया बिगाड़ के